जिंदगी एक, और मौत हज़ार मिली,
हमें गम-ए-फ़िज़ा, तुम्हें बहार मिली,
मैने वफ़ा के नाम पे, लुटाया आशियाँ,
मुझे बस्तियां फरेबियों की गुलज़ार मिली,
हम टुकड़ो टुकड़ो में जीते रहे उम्रभर,
जैसे जिंदगी खुद की हमें उधार मिली,
दीवानों में ना थी कोई मुकम्मल सूरत,
मोहब्बत में सताई सब बेज़ार मिली,
हमसे भी हुई थी कभी इश्क की खता,
फिर दुश्वारियां “मन”को बेशुमार मिली,
~~~~~~~~
मनोज सिंह “मन”
(msinghthakur4@gmail.com