हाले ऐ दिल अपना कभी सुनाओ भी
कभी हमसे मिलो खुद को मिलवाओ भी
यहाँ हर शख़्स सलीब पर है अकेला
अपनी तन्हाइयों को गुनगुनाओ भी
हमारा हाल तो क़तरा क़तरा था बिखरा
जो समेट सको तो हमको उठाओ भी
हर रोज़ मैं खुला छोड़ती हूँ दरवाज़ा
ग़र समय मिले तो खटखटाओ भी
पड़े है जंग के निशान रिश्तों में ‘आभा’
अपनी मुस्कराहटों से इसे मिटाओ भी
आभा….